Sunday, March 28, 2010

विश्व गुरु भारत की पुकार:-

विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?

इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--१) युवादर्पण से करते हैं: -
युवा शक्ति का विकास क्रम शैशव, बाल, किशोर व तरुण!
घड़ा कैसा बने?-इसकी एक प्रक्रिया है. कुम्हार मिटटी घोलता, घोटता, घढता व सुखा कर पकाता है! शिशु,युवा,बाल,किशोर व तरुण को संस्कार की प्रक्रिया युवा होते होते पक जाती है! राष्ट्र के आधार स्तम्भ, सधे हाथों, उचित सांचे में ढलने से युवा समाज व राष्ट्र का संबल बनेगा: यही हमारा ध्येय है!
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है!
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!"
YuvaaDarpan.blogspot.com

Friday, March 26, 2010

मिलन

कभी कभी मन में सोचती हूँ कि मैं क्या हूँ ?
तुम्हारी परछाई या तुम्हारी आशाओं का बदन

तुम्हारी जिन्दा मुर्दा इच्छाओं कि कब्रगाह
या तुम्हारे और मेरे देखे हुए सपनों का चमन

जीवन में अनेकों प्रश्न कितने बड़े और टेढ़े
जैसे शांत और भयानक ये नील गगन

बहुत देर तक जोड़े रखा है तुमसे खुद को
अब लगता है कभी कि मैं तुम हो जाऊंगी

बहुत दिनों से ढांप राखी थी जिंदगी क़ी चादर
"कादर" तुमसे मिलने हर दीवार गिराकर आऊँगी

केदार नाथ "कादर"
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Thursday, March 18, 2010

गणगौर पूजन गीत

एक दो तीन चार,पांच छ: सात आठ
नौ दस ग्यारा बारा तेरा चौदा
पंदरा सोळा,ईसर बावजी भोळा
गौर पूजूं करमेती य ईसर पूजूं पारबती
पारबती का आला नीला
गौर का सोना का टीला
टील रे टपला दे राणी
बरत करे गौरा दे राणी
करतां करतां आसग्यो मासग्यो
गौले घाटे लाडू लाद्यो
लाडू ले बीरा ने दीदो
बीरो ले मने साड़ी दी दी
साड़ी ने सिघाड़ो,बाड़ी में बजौरो
तण मण सोरो
सात कचोरो
राणी पूजे राज ने,म्हे पूजां सुहाग ने
राणी को राज घटतो जाय
म्हाकों सुहाग बढ़तो जाय
कीड़ी कीड़ी जात है,जात पड्यां गुजरात है
गुजरात्यां को पाणी आयो
आक फूल कळी की डोडी
एक दो तीन चार,पांच छ: सात आठ
नौ दस ग्यारा बारा तेरा चौदा
पंदरा सोळा,
ईसर बावजी भोळा...............
स्त्रोत-राजस्थानी लोकाचार गीत पुस्तक
लेखिका श्रीमती चन्द्रकान्ता व्यास
सम्पर्क सूत्र
01472-241532

लोकगीत संकलन:
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

असल के नेता मगर खुरचन हुए

गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से खिली ग़ज़ल आपकी नज़र है .......... आशा है आपको पसंद आएगी .....

नेह के संबंध जब बंधन हुए
मन के उपवन झूम के मधुबन हुए
      लक्ष्य ही रहता है दृष्टि में जहाँ
      वक्‍त के हाथों वही कुंदन हुए
प्रेम की भाषा से जो अंजान हैं
जिंदगी में वो सदा निर्धन हुए
      सत्य बोलो सत्य की भाषा सुनो
      तब समझना आज तुम दर्पण हुए
किसके हाथों देश की पतवार है
गूंगे बहरे न्‍याय के आसन हुए
      हैं मलाई खा रहे खादी पहन
      असल के नेता मगर खुरचन हुए
             दिगम्बर नासवा
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Tuesday, March 16, 2010

कविता में सच

छंदों में लिखता है कोई,
छापता है कोई लंबी कविता
 आज भी,
बंद कमरों में अपने-अपने,
बुन रहे हैं जीवनगाथा,
साफ़-साफ़ बात यही पर,
पढ़ता नहीं कोई दूजे का लिखा,
समझता है अछूत की तरह,
बैठकर कुछ देर,
बस पलट लेता है पन्ने,
दिलाने को दिलासा एकबार,
खेल रहें हैं सब शब्दों से,
पंक्ति-पंक्ति छांट रहे,
कोई गढ़ रहा गांव,गीतों में,
दीवारें पोत रहा कोई शहरों की,
यही गीत की किस्मत बन गई,
यही कविता का कायदा,
मुरझाये हैं गीत कई,
छपी और दबी किताबों में,
अलमारी भरी है सबकी,
बस ताला बाकी रह गया,
देखता है मेहमान आता जाता,
उठाता नहीं कोई भी,
किताब,जी बहलाने को ही,
मेलझोल का खेल यहां सब,
बेतालों का काम नहीं,
मिलने वाले छप जाते हैं,
लिखने वाले रह जाते,
आज पुराने गीत कहां,
बीत गई कवितायें भी,
कहानी उमड़ रही अब तो,
बचीकुची अभिलाषा से,
सुर मिलाता रहता हूं मैं भी,
अब तो मेले,हाट-बाज़ारों में,
फ़िर फ़िर गाता वही मैं,
पढ़ा कभी जो किताबों से,
इन दिनों नाही पूछो,
गीत,
बनते और बिगड़ते देखे
हमने शब्द उमड़ते देखे हैं,
ताल बदलती देखी है,
गीतों के ताने बाने से,
कहीं राह बदलती देखी है,
झांकता है जीवन सदा ही,
कौमा लगे आखर के बाद वाली पंक्ति से,
आज भी देख रहा है टुकुर-टुकुर,
किसी के गीत प्रेम रंगे हैं,
कोई फ़िरता बेरंग खुलेआम,
दर्दभरे हैं गीत किसी के,
कोई खुशियों के पार खड़ा है,
इस आलम से तपती धरती,
सफ़र के बीच रूका ना कोई,
चलते मिले मुसाफ़िर रोज़,
इसी सफ़र में चलते-चलते,
पड़ी आवाज़ फ़िर कानों में,
बचपन वाली गलियों की,
याद कविता आती है,
बालसभा में गाई थी कभी,
पड़ौसी देवरे के कुछेक भजन भी,
याददाश्त का हिस्सा हैं,
याद आते हैं कभी किलकारते बच्चे,
और शादी-ब्याह के गीत भी,
सोचता हूं आज भी,
चुनकर कुछ शब्द उसी इलाके के,
पूरा कर दूं गीत मेरा,
अधूरा जो पड़ा रहा अबतक,
पता नही वक्त कब आयेगा,
बस आस लगाये बैठा हूं,
इन्तजार की इन राहों में
अबतक रीता बीत गया,
जीवन अपना खाली,
अब लगा कुछ धूप खिली है,
फूल खिले फ़िर बगियां के,
पड़ौस का शीशम सूझा रहा है,
नई पंक्ति,और छंद नया,
डाली अपनी ओर झुकाकर थोड़ी दूरी पर,
शब्द खड़े हैं फ़िर देहरी पर,
छंद नया बनाने को,
रखा संभालकर अपना लिखा,
अब तक यूं अलमारी में,
कहा था कभी किसी जानकार ने,
गीत,कविता छूपा के रख दो,
जल्दी क्या है,पकने दो थोड़ा,
दरवाजा खोला अरसे के बाद आज़,
बड़ी बेताबी से गले मिली,
रचनायें मेरी,
पकी हुई थी कुछ पीली-पीली,
सजकर थी पूरी तैयार,
जाने को महफ़िल,सभा और मण्डप में
भरने,जीतने और सिर उठाकर,
चलने को एक बार फ़िर,
यही गीत की किस्मत थी,
और यही अनौखा जीवन उसका.....................
















सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव
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Monday, March 15, 2010

नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.

अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू  समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
Ugadi marks the beginning of a new Hindu lunar calendar. Celebrated mostly in Andhra Pradesh and Karnataka, it is a day when mantras are chanted and predictions are made for the new year. The most important part is Panchanga Shravanam - hearing of the Panchanga. The Panchanga Shravanam is usually done at the temples by priests. Before reading out the annual forecasts as predicted in the Panchanga, the officiating priest reminds the participants of the creator, Brahma, and the span of creation of the universe. Kavi Sammelanam (poetry recitation) is a typical Ugadi feature. A literary feast for poets and public alike, many new poems written on subjects as varied as Ugadi, politics, modern trends and lifestyle are presented. Kavi Sammelanam is also a launch pad for budding poets. And is usually carried live on All India Radio's Hyderabad 'A' station and Doordarshan, Hyderabad following 'panchanga sravanam' (New Year calendar).
The tastes of Ugadi are actually 6,Neem Buds/Flowers for Bitter, Raw Mango for Tangy, Tamarind Juice for Sour, Green Chilli for Hot, Jaggery for Sweet, Pinch of Salt for Salt
which symbolizes the fact that life is a mixture of different expereinces (sadness, happiness, anger, fear, disgust, surprise) , which should be accepted together and with equanimity.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ http://www.deshkimitti.blogspot.com/

Wednesday, March 3, 2010

मन का बसंत
बसंत सब का तो नहीं हो सकता समय के साथ
लेकिन समय अगर अच्छा हो तो बसंत ही होता है
     हाँ ये बात और है कि ऐसा कभी कभी होता है
     इसलिये इश्वर ने भी एक ही बसंत बनाया है
मगर वह प्रभु समझ से परे की चीज़ है
इसलिये मन का बसंत हमेशा के लिए बनाया है
     जो किसी बादल के पानी का मोहताज नहीं है
     कभी आंसुओं से हरा होता है कभी आंसुओं में डूबता है
बसंत मन का कर सकते हो हमेशा के लिये
अगर दूसरों के आंसू पी सकते हो "कादर" हँसते हुए
केदार