Tuesday, May 4, 2010

परेशानियाँ

जीवन है तो होंगो ही वो
कहते हैं जिनको परेशानियाँ
चलती रहती हैं साथ वो
बन के जीवन की परछाईयां

ये दोस्त हैं हमारी ही तो
मिलाती हैं एक दूजे से परेशानियाँ
उस खुदा को भी यद् करते तभी
जब वो देता है हमको परेशानियाँ

शुक्रिया शुक्रिया परेशानियों शुक्रिया
तुम्हारी मेहरवानियों ने पता उसका दिया
भूल ही बैठे थे खुद बनकर खुदा
तुमने सिखाया हम हैं क्या ? शुक्रिया

परेशानियाँ ही जोडती है हमें
ये करती हैं हम पर मेहरवानियाँ
याद आया खुदा पाकर तुम्हे
"कादर" परेशानियों को शुक्रिया शुक्रिया

केदारनाथ "कादर"

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Sunday, May 2, 2010

(कविता) -वसीयत

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लिख दी है वसीयत मेंने 
बेटे बेटी के नाम आज 
बढ़ा चढ़ा के क्या लिखूं 
अभी तलक का कमाया ही
साफ़ लिख दिया है करीने से
खुद ही सफेद पाठे पर नीली स्याही से
बँटवारा बराबरी का किया है मैंने
लड़ने की बात रखी ना बाकी
बड़े को ब्लॉगर,बेटी को ऑरकुट
पत्नी को फेसबुक थमा दी है
सोचता हूँ छुटके को ट्विटर देदूं,
पता सभी का एक रखा है
बदल बदल कर पासवर्ड  बाँट दिया
कर्जे में मकान किराया एक को
दूजे को बिजली की बाकियात मिली है
बेटी को अप्रकाशित उपन्यास हाथ लगा
और पत्नी को कवि सम्मेलनी कवितायें
छोटे पे मेरा दिल कुछ ज्यादा है
दूंगा उसे ही आदतें सारी मेरी अपनी
चाय की थड़ी पर गप्पेबाजी का आलम
जी-टॉक पर बातों का हूनर
और मिस कॉल मारने की मजबूरी
केवल दो उँगलियों से कि-बोर्ड चलाने की आदत 
भी उसी के हिस्से लिख दी है
सब कुछ तो लिख दिया है आज
रोजनामचे की तरह खरा-खरा
गाँव में पानी,बस और बिजली का इन्तजार
जानबुझ  कर दिया है शहर  में रहते बड़े बेटे को
सरकारी ऑफिसों की चक्करबाजी का गणित और
धड़ेबाजी वाला  समाजशास्त्र किसे दूं
समझ से परे लगता है इस पीढ़ी को
वसीयत  के ख़ास हिस्से को पढ़ने के लिए 
होता  नहीं कोई तैयार खुदा जाने
जहां लिखा है मेंने  बाप के मरणभोज में
बेचे पुस्तेनी मकान का हिसाब अब भी
और लिखा है कम उम्र में मां बनने से
मरी पहले वाली पत्नी की कहानी
सादे कागज़ की किनोरें गीली होने लगी है
वसीयत हाथ से ढ़ीली होने लगी है
दुःख  ज्यादा और सम्पति कम लिखी है मैंने
किराए का मकान और मालिक की धमकी
अभी लिखनी बाकी है वसीयत में मेरे
पत्नी को घर छोड़,महिला मित्रों से लम्बी बातें
लिखू कैसे डर लगता है थोड़ा सा
औरों की थाली में ज्यादा नज़र रखने 
वाली आँख़ें कौन नेत्र दान में लेगा मेरी
सोच रहा हूँ बैठा-बैठा
पड़ौसियों से किया अदाकारी का व्यवहार
और उधार के पैसों पर बेफिक्री की ज़िंदगी
इसी वसीयत का हिस्सा बना  है
तकिये के नीचे कुछ नहीं है अब 
तिजोरी की चाबी जैसा
ज़मीन में दबा नहीं रखा कुछ भी खोदने को
मेरे पास तो रही बाकी 
ज़िरो बैलेंस वाली संस्कृति
कोयले और चॉक से लिखे नामों सहित ऐतिहासिक इमारतें
लिख दिया  है आने वाली पीढ़ी के नाम 
प्लास्टिक की थैलियों से अटा पड़ा शहर का तालाब
नदी,नाला,सड़कें और 
समारोह में उड़ती फिरती प्लास्टिक की गिलासें 
नास्ते के भरोसे आयोजनों में मेरी भागीदारी 
और अखबारी खबर में मेरे  नाम
वाली कतरनें संभाल रखी है 
वसीयत में देने को
लेने को राजी नहीं कोई क्या करें
कुछ भी बाकी नहीं रखा है
माफ़ करना मेरे अपनों 
ज्य़ादा कमा नहीं पाया 
लिखने को वसीयत मेरी
वसीयत पूरी होती है 
 
रचना:माणिक

Wednesday, April 28, 2010

दर्द

दर्द क्या सिर्फ सहने के लिए होता है
या दर्द होता है इसलिए हम सहते हैं
दर्द को कोई दर्दवान ही समझता है
दर्द अपनी अपनी सोच पर निर्भर है

दर्द की परिसीमाएं और परिभाषाएं अपनी
किसी का दर्द, किसी के लिए काम है
दर्द बस दिलवालों का होता है ऐसा नहीं
बेदिल भी बेदर्दी होने के नाते इससे जुड़े हैं

कभी दर्द के, कभी खून के या मय के
बस दर्द के कारण ही, हम घूंट पीते हैं
हमें दर्द कभी तोड़ता है, कभी जोड़ता है
हमें मजबूर भी जीने के लिए दर्द करता है

दर्द मार भी डालता है, शर्म को, जिस्म को
या कभी कभी जमीर और इन्सान को
दर्द ही बनाता है मशीन एक इन्सान को
दर्द ही "कादर" मशीन से इन्सान बनाता है

केदारनाथ "कादर"
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

आम आदमी

एक आम आदमी की जिद है
वो परेशान है सरकारी चाल से
वह जानना चाहता है -
सरकार आदमी के जीने के लिए,
क्या कोई अनुदान देती है ?
वह तो जानता है मरने के लिए,
सरकार आर्थिक मदद देती है I

आम आदमी का प्रश्न है -
क्या सरकार का काम मौत का संरक्षण है ?
या खुद आम आदमियों को मारना I
हाँ, नीतियाँ कुछ ऐसी ही हैं सरकार की,
वे मारना चाहते हैं आम आदमियों को
आसाम में, बंगाल में, कश्मीर में,
बिहार, आँध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ में-
ताकि देश में शांति हो शमशान जैसी I

इसलिए निहत्था आम आदमी
ढूंढ़ रहा है सरकार को ताकि-
उसके बन्दूक वाले आम आदमी
उसे मार दें एक सरकारी गोली
जिससे इलाके में शांति हो
और उसके पेट में चलता युद्ध
बंद हो, जो है भूख के खिलाफ
जो पल रही रंडी बन के
नेताओं के बिस्तरों पर I

केदारनाथ "कादर"
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Friday, April 23, 2010

नए मानव का सृजन

आज अनेकों उपदेशक है धर्म के
किन्तु कोई भी नानक या कबीर नहीं
खेती की बात सभी करतें है लेकिन
मन के खेत सभी के हैं सूख
दुनिया की धन दौलत और मान के
सब के सब भूखे माया और मान के
कौन चाहता है शांति जीवन में ?कौन धर्म को होना चाहता है उपलब्ध ?कौन चाहता है सत्य का अन्वेषण ?कौन चाहता है मन भूमि का सिंचन ?चाहत है यदि परमेश्वर की मन में ?बीज सरलता का रखना होगा मन में
हृदय द्वार ईश्वर सब के खटकाता है
बीज प्रेम का समरूप सदा बिखरता है
किन्तु असत्य और धोखा मन का
इस बीज के अंकुर को खा जाता है
हृदय भूमि है जहाँ कठोर और काँटों भरी
सत्य नहीं उगता कभी ऐसे मन में
साधना हर स्वांस में जब होगी तभी
आराधना हर स्वांस में जब होगी तभी
मन के द्वार जब सब पे खुल जायंगे
मोक्ष और अपवर्ग सुख धरा पर आएंगे
हर जर्रा तभी तो बनेगा आफ़ताब
हम तभी सच में भारतीय बन पाएंगे
सत्य मिलन की अभिलाषा है यदि मन में
हल सरलता का चला डालो मन में
बीज परमेश्वर का पल्लवित पुष्पित होगा
फैल जाएगी सुगंध तब चहुँ ओर ही
तब उसी इश्वरत्व की सुगंध से
"
कादर" नए मानव का सृजन होगा
                      केदारनाथ "कादर"

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

खेल

अब मजदूरों की कौन सुने ?
अब मजबूरों की कौन सुने ?
सत्ता के गलियारों में हैं -
गाँधी जी के बन्दर बैठे
वे बोल रहे हैं बे तोले
वे सुनतें हैं दे अंगुली कान
आँखों पर पट्टी बांध रखी
करतें हैं खेलों का गुणगान
कहीं तोड़ रहे हैं सड़के
कहीं पर करते हैं निर्माण
ताकि इन सब की आड़ में
मुनाफे का बना सकें सामान
क्या देश को खेल ही चाहियें ?
क्या देश में नहीं समस्या है ?
क्या एकाएक गरीबी गायब है ?
लीपा पोती से क्या होगा ?
अब भी लोग सड़कों पे सोते हैं
बच्चे भूखे अभी भी रोतें हैं
मरतें है लोग बिना दवाई के
बिन कपड़ों के लोग होतें है दफ़न
अभी पहुंची नहीं हैं किताबें
नहीं देखा है स्कूल का मुहं
जहाँ पता नहीं कहाँ रहते हैं
उस देश में खेल तमाशा है
ये खेल नहीं अय्यासी हैं
गरीबी की खिल्ली बदमाशी है
भूखे नंगे क्या खेलेंगे
बस हार का दंश ही झेलेंगे
इतना पैसा गर कहीं और
सही तरह कहीं पर लग जाता
कितने भूखे प्यासों को "कादर"
कुछ दिन जीने को मिल जाता
केदारनाथ "कादर"
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण



Wednesday, April 14, 2010

चन्दन तरुषु भुजन्गा
जलेषु कमलानि तत्र च ग्राहाः
गुणघातिनश्च भोगे
खला न च सुखान्य विघ्नानि
Meaning:
We always find snakes and vipers on the trunks of sandal wood trees, we also find crocodiles in the same pond which contains beautiful lotuses. So it is not easy for the good people to lead a happy life without any interference of barriers called sorrows and dangers. So enjoy life as you get it.
Courtesy: रामकृष्ण प्रभा (धूप-छाँव)
विश्व गुरु भारत की पुकार:-
विश्व गुरु भारत विश्व कल्याण हेतु नेतृत्व करने में सक्षम हो ?
इसके लिए विश्व गुरु की सर्वांगीण शक्तियां जागृत हों ! इस निमित्त आवश्यक है अंतरताने के नकारात्मक उपयोग से बड़ते अंधकार का शमन हो, जिस से समाज की सात्विक शक्तियां उभारें तथा विश्व गुरु प्रकट हो! जब मीडिया के सभी क्षेत्रों में अनैतिकता, अपराध, अज्ञानता व भ्रम का अन्धकार फ़ैलाने व उसकी समर्थक / बिकाऊ प्रवृति ने उसे व उससे प्रभावित समूह को अपने ध्येय से भटका दिया है! दूसरी ओर सात्विक शक्तियां लुप्त /सुप्त /बिखरी हुई हैं, जिन्हें प्रकट व एकत्रित कर एक महाशक्ति का उदय हो जाये तो असुरों का मर्दन हो सकता है! यदि जगत जननी, राष्ट्र जननी व माता के सपूत खड़े हो जाएँ, तो यह असंभव भी नहीं है,कठिन भले हो! इसी विश्वास पर, नवरात्रों की प्रेरणा से आइये हम सभी इसे अपना ध्येय बनायें और जुट जाएँ ! तो सत्य की विजय अवश्यम्भावी है! श्रेष्ठ जनों / ब्लाग को उत्तम मंच सुलभ करने का एक प्रयास है जो आपके सहयोग से ही सार्थक /सफल होगा !
अंतरताने का सदुपयोग करते युगदर्पण समूह की ब्लाग श्रृंखला के 25 विविध ब्लाग विशेष सूत्र एवम ध्येय लेकर blogspot.com पर बनाये गए हैं! साथ ही जो श्रेष्ठ ब्लाग चल रहे हैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ मंच देने हेतु एक उत्तम संकलक /aggregator है deshkimitti.feedcluster.com ! इनके ध्येयसूत्र / सार व मूलमंत्र से आपको अवगत कराया जा सके; इस निमित्त आपको इनका परिचय देने के क्रम का शुभारंभ (भाग--1) युवादर्पण से किया था,अब (भाग 2,व 3) जीवन मेला व् सत्य दर्पण से परिचय करते हैं: -
2)जीवनमेला:--कहीं रेला कहीं ठेला, संघर्ष और झमेला कभी रेल सा दौड़ता है यह जीवन.कहीं ठेलना पड़ता. रंग कुछ भी हो हंसते या रोते हुए जैसे भी जियो,फिर भी यह जीवन है.सप्तरंगी जीवन के विविध रंग,उतार चढाव, नीतिओं विसंगतियों के साथ दार्शनिकता व यथार्थ जीवन संघर्ष के आनंद का मेला है- जीवन मेला दर्पण.तिलक..(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,09911145678,09540007993.
3)सत्यदर्पण:- कलयुग का झूठ सफ़ेद, सत्य काला क्यों हो गया है ?
-गोरे अंग्रेज़ गए काले अंग्रेज़ रह गए! जो उनके राज में न हो सका पूरा,मैकाले के उस अधूरे को 60 वर्ष में पूरा करेंगे उसके साले! विश्व की सर्वश्रेष्ठ उस संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है.देश को लूटा जा रहा है.! भारतीय संस्कृति की सीता का हरण करने देखो साधू/अब नारी वेश में फिर आया रावण.दिन के प्रकाश में सबके सामने सफेद झूठ;और अंधकार में लुप्त सच्च की खोज में साक्षात्कार व सामूहिक महाचर्चा से प्रयास - तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/ चैट करें,संपर्कसूत्र-तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611,9911145678,09540007993.

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण