Sunday, October 17, 2010

मानवता हितार्थ के निहितार्थ?

मानवता हितार्थ के निहितार्थ?
वामपंथियों ने स्वांग रचाया, पहन मुखौटा मानवता का;
ये ही तो देश को बाँट रहे हैं, पहन मुखौटा मानवता का !!
मैं अच्छा हूँ बुरा विरोधी, कहने को तो सब ही कहते हैं;
नकली चेहरों के पीछे किन्तु, जो असली चेहरे रहते हैं;
आओ अन्दर झांक के देखें,और सच की पहचान करें;
कौन है मानवतावादी और, शत्रु कौन, इसकी जाँच करें!
मानवतावादी बनकर जो हमको, प्रेम का पाठ पढ़ाते हैं;
चर- अचर, प्रकृति व पाषाण, यहाँ सारे ही पूजे जाते हैं;
है केवल हिन्दू ही जो मानता, विश्व को एक परिवार सा;
किसके कण कण में प्रेम बसा, यह विश्व है सारा जानता!
यही प्रेम जो हमारी शक्ति है कभी दुर्बलता न बन जाये;
अहिंसक होने का अर्थ कहीं, कायरता ही न बन जाये ?
इसीलिए जब भी शक्ति की, हम पूजा करने लग जाते हैं;
तब कुछ मूरख व शत्रु हमारे, दोनों थर्राने लग जाते हैं!
शत्रु भय से व मूरख भ्रम से, चिल्लाते जो देख आइना;
मानवता के रक्षक को ही वो, मानवता का शत्रु बतलाते;
नहीं शत्रु हम किसी देश के, किसी धर्म औ मानवता के;
चाहते इस सोच की रक्षा हेतु, हिंदुत्व को रखें बचाके !
अमेरिका में यदि अमरीकी ही अस्तित्व पे संकट आए;
52 मुस्लिम देशों में ही जब, इस्लाम को कुचला जाये;
तब जो हो सकता है दुनिया में, वो भारत में हो जाये;
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!
जब हिन्दू के अस्तित्व पर भारत में ही संकट छाये!!"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है ! इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Saturday, September 11, 2010

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु

आत्मग्लानी नहीं स्वगौरव का भाव जगाएं, विश्वगुरु  मैकाले व वामपंथियों से प्रभावित कुशिक्षा से पीड़ित समाज का एक वर्ग, जिसे देश की श्रेष्ठ संस्कृति, आदर्श, मान्यताएं, परम्पराएँ, संस्कारों का ज्ञान नहीं है अथवा स्वीकारने की नहीं नकारने की शिक्षा में पाले होने से असहजता का अनुभव होता है! उनकी हर बात आत्मग्लानी की ही होती है! स्वगौरव की बात को काटना उनकी प्रवृति बन चुकी है! उनका विकास स्वार्थ परक भौतिक विकास है, समाज शक्ति का उसमें कोई स्थान नहीं है! देश की श्रेष्ठ संस्कृति, परम्परा व स्वगौरव की बात उन्हें समझ नहीं आती! 
 किसी सुन्दर चित्र पर कोई गन्दगी या कीचड़ के छींटे पड़ जाएँ तो उस चित्र का क्या दोष? हमारी सभ्यता  "विश्व के मानव ही नहीं चर अचर से,प्रकृति व सृष्टि के कण कण से प्यार " सिखाती है..असभ्यता के प्रदुषण से प्रदूषित हो गई है, शोधित होने के बाद फिर चमकेगी, किन्तु हमारे दुष्ट स्वार्थी नेता उसे और प्रदूषित करने में लगे हैं, देश को बेचा जा रहा है, घोर संकट की घडी है, आत्मग्लानी का भाव हमे इस संकट से उबरने नहीं देगा. मैकाले व वामपंथियों ने इस देश को आत्मग्लानी ही दी है, हम उसका अनुसरण नहीं निराकरण करें, देश सुधार की पहली शर्त यही है, देश भक्ति भी यही है !
भारत जब विश्वगुरु की शक्ति जागृत करेगा, विश्व का कल्याण हो जायेगा !

 "अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !
 इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Sunday, September 5, 2010

राष्ट्र मंडल खेल आयोजन और दिल्ली

राष्ट्र मंडल खेल आयोजन और दिल्ली     -तिलक राज रेलन आजाद 
जानकारी मिली दिल्ली सरकार से,
कभी पढ़ा था हमने किसी अख़बार से, 
राष्ट्र मंडल खेलों का आयोजन होगा,
दिल्ली पर 55 हज़ार करोड़ का व्यय होगा!

दिन महीने वर्ष बीत गए उस शुभ घडी की प्रतीक्षा में,
पता नहीं कौन से पाठ पढ़े थे नेताओं ने अपनी शिक्षा में,
दिल्ली का रंग रूप तो इस आयोजन की तैयारी में भी
बदल नहीं पाया, चुक गयी सारी निधी जाने किस भिक्षा में

इतनी राशी मुझे जो मिल जाती
बिजली- पानी, सड़क भी खिल जाती
दिल्ली यूँ भाग्य पर नहीं रोती
इसके ठहाकों से दुनिया हिल जाती

सारा ढांचा बदल के रख देता 
दिल्ली दुल्हन बना के रख देता
देखते जिस ग़ली, सड़क की तरफ 
नज़ारों पर नज़र फिसल जाती  

ऐसा होना तो तब ही संभव था 
बईमानी होना जहाँ असंभव था 
नेता हो और बईमानी भी न करे?
ऐसा होना ही तो असंभव था!

कैसा वो करार था और कैसा वो समय होगा
देश के यश का वास्ता दिया मगर अपयश होगा 
मदमस्त बेखबर से बैठे है सब क्यों 'तिलक'
यश हो अपयश किसी पे इसका असर कहाँ होगा?

सौभाग्य ऐसा नहीं है दिल्ली का 
छींका*लिखा पड़ा है बिल्ली का 
(छींका -मलाई की हंडिया)
छींका लिखा पड़ा है बिल्ली का
छींका लिखा.....

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है ! इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Monday, July 12, 2010

तुम

मेरे दिल में क्या है जो तुम देख पाते
खुदा की कसम तुम न यूँ रूठ पाते

तुम जो गए हो तो दिल है ये सूना
क्यूँ इतनी थी जल्दी कुछ तो बताते

है बेचैन दिल ये , नहीं चैन इसको
करें क्या हम कुछ समझ ही न पाते

तनहाइयों के रंग बड़े ही अज़ब हैं
जुदाई सहें कैसे हमें तू ही बता दे

अब छा गया है मेरे हर सू अँधेरा
खुशियों को तुम बिन कैसे सदा दें

तुम ही हो साज इस जीवन के मेरे
"कादर" कैसे सजें सुर तू ही बता दे

केदारनाथ"कादर"
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"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Wednesday, June 30, 2010

टोपी धारी किन्नर

तुम प्रजातंत्र का नाम लेकर
पीटते रहो ढोल वाह वाही के
और वो तुम्हारे देश में ही
पले कुत्ते , देखें तुम्हे घूरकर
झाग उगलते चीखते चिल्लाते
कहते रहो- देश को माँ भारती
वो तुम्हारा राष्ट्रीयगान नहीं गायेंगे
पोंछेंगे तुम्हारे झंडे से अपने जूते
तुम अहिंसा का राग अलापते हो
अहिंसा कायरो को शोभा नहीं देती
तुम्हे कश्मीर में सरकार चाहिए अपनी
इसलिए बेच दी है भावनाएं देश की
तुम समझौता चाहते हो देशद्रोहियों से
कर साल अरबों रुपये लुटाते हो उनपर
वो तुमपर थूकते हैं, भागते हैं पाकिस्तान
सीखने नए पैंतरे तुम्हे काटने के लिए
तुम्हारे अपने देश के कश्मीरी बच्चे
बिकते हैं सिर्फ दो दो सौ रपये में
मारने को पत्थर तुम्हारे जवानों पर
बैठे रहो सीमाओं पर करते रहो रक्षा
बाहर को देखते हुए अपने दुश्मन
और वो साले लड़ाते रहें तुम्हें
धर्म और इस्लाम के नाम पर
वो इस्लाम का "इ" नहीं जानते
मगर जानते हैं तुम्हारी कमजोरी
जीतकर हारने की तुम्हारी आदत
देखते रहो सपना पूरे कश्मीर का
बिना कुर्वानी कुछ नहीं मिलता
शिखंडी सरकार के नुमाइन्दे सिर्फ
भौंकना जानते हैं, सिपाहियों से घिरे
कभी कुछ बोल भी दिया जोश में
आलाकमान बुलाकर धमका देती है
अरे कुर्सी से चिपके हुए पिस्सुओ
तुम से कुछ नहीं होता तो छोड़ दो
आगे आने दो हिजड़ों को भी
शायद वो ही बचा सकें देश की इज्ज़त
क्योंकि उनके मरने पर कोई नहीं रोता
अपने क्रिया कलापों से तुम ही हो
इस संसद के टोपी धारी किन्नर

केदारनाथ" कादर"
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"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Wednesday, June 23, 2010

माया

खेल अनोखा पागल मन का , बिलकुल समझ न आये
पानी, पानी बिच रहे बुलबुला , काहे ये अलग कहाए

जीवन है क्षणभंगुर ऐसा , पानी के बुलबुले के जैसा
कुछ भी अलग नहीं दोनों में, बात समझ नहीं आये

मूल में आकर मिलना है, भेदन करके रूप नए का
द्वैत मिटाना है अंतर से , यही जीवन लीला कहलाये

मूल से मिल मूल जान ले, अलग नहीं तू सत्य मान ले
अलग अलग का भान ही तेरा, "कादर" माया कहलाये

केदारनाथ" कादर"kedarrcfdelhi.blogspot .com


"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

Monday, June 21, 2010

सदा ए वक़्त

जब तलक फिर से लहू बहाया न जायेगा
मुल्क बरबादियों से बचाया न जायेगा

किससे करें शिकायत, शिकवा, सब हैं चुप
बिन शोर नाखुदाओं को जगाया न जायेगा

माना हैं बिगड़े मुल्क के मेरे हालात दोस्तों
क्या एक नया इन्कलाब लाया न जायेगा

खुदगर्ज़ रहबरों की है बारात मुल्क में
क्या फ़र्ज़ का सलीका सिखाया न जायेगा

जब तक सुकून से नहीं मुल्क का हर शख्स
सोने का फ़र्ज़ "कादर" निभाया न जायेगा

केदारनाथ" कादर"
kedarrcfdelhi.blogspot .com


"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण