हम इतने नहीं महान हैं ?....
किसी कवि ने लिखा, आश्चर्य चकित रह गया ।
सहस्त्रों ऋषि मुनियों सा, इन्सान ये कह गया ?
अब तो मजहब कोई, ऐसा भी चलाया जाए ,सहस्त्रों ऋषि मुनियों सा, इन्सान ये कह गया ?
जिसमें इनसान को, इनसान बनाया जाए !!
इसे देखके मन ये बोला, कुछ ऐसा लिखा जाये ।
तम के गम को मिटा के निज उजियारा फैलाये ।
नकली आभूषण असली से बढ़के बिक जाते हैं ।
इसे देख के हम, नकली के लोभी बनते जाते हैं ।
असली हीरा खोने पर, कोई नकली नहीं बनवाता ।
धरती अम्बर एक किया तो खोज उसी को लाता ।
भारत का है सत्य खो गया, उसे खोज कर लाना ।
छद्म रचे से मूल है उत्तम, व भारतवंशी कहलाना ।
श्रेष्ठ था जो भी था अपना, अब रह गया है सपना ।
नालंदा तक्षशिला जला कर, मिटा जो था अपना ।
अब नकली को पढ़ना होता, नकली राह दिखाता ।
न असली खाने को ही है, नकली सब होता जाता ।
कोई देवी देवता नहीं हम , न ही कोई भगवान हैं ।
सत्य की राह पर चलते हुए , बस इक , इन्सान हैं ।
तम के गम को मिटा के निज उजियारा फैलाये ।
नकली आभूषण असली से बढ़के बिक जाते हैं ।
इसे देख के हम, नकली के लोभी बनते जाते हैं ।
असली हीरा खोने पर, कोई नकली नहीं बनवाता ।
धरती अम्बर एक किया तो खोज उसी को लाता ।
भारत का है सत्य खो गया, उसे खोज कर लाना ।
छद्म रचे से मूल है उत्तम, व भारतवंशी कहलाना ।
श्रेष्ठ था जो भी था अपना, अब रह गया है सपना ।
नालंदा तक्षशिला जला कर, मिटा जो था अपना ।
अब नकली को पढ़ना होता, नकली राह दिखाता ।
न असली खाने को ही है, नकली सब होता जाता ।
कोई देवी देवता नहीं हम , न ही कोई भगवान हैं ।
सत्य की राह पर चलते हुए , बस इक , इन्सान हैं ।
सीधे सादे सच्चे रह सकें, बस इतना ही तो ज्ञान है ।
धार्मिक हैं, किन्तु नया धर्म रचें ? न ऐसे महान हैं ।
हम इतने नहीं महान हैं ....
तिलक संपादक युग दर्पण मीडिया समूह 9911111611,"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||" युगदर्पण
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