शब्द मसीहा 'मित्र केदार'

आखिर सीख ही ली उस रोज
बारहखड़ी मैंने भी जब मिला
उन मात्राओं से जिनके बिना
बहुत मुश्किल था शब्द होना
जब शब्द मिले तब बन गयी
एक मित्रता की गूढ़ कविता
बारहखड़ी मैंने भी जब मिला
उन मात्राओं से जिनके बिना
बहुत मुश्किल था शब्द होना
जब शब्द मिले तब बन गयी
एक मित्रता की गूढ़ कविता

"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||" युगदर्पण
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