हम भी खुदा
हम पागल हैं या वो बहरे,
असर नहीं क्यूँ होता है ?
प्यार में पागल हर कोई
क्यूँ सौ सौ आँसू रोता है ?
आँसू क्यूँ आते हैं सोचो ?
सपने धोने की खातिर
बिन सपनोंवाला भी सोचो
क्या कोई इंसा होता है ?
हर एक का सपना लड़ता है
बेबात ही मेरे सपनों से
सपनों को बचाने की खातिर
ग़दर दिलों का होता है
ग़दर गलत है अपनी खातिर
हर कोई ये समझाता है
लड़ी न जिसने जंग कोई भी
वो ही जनरल कहलाता है
हम पागल हैं, हम लडतें हैं
हमने ही सपने पाले हैं
"कादर" है मतवाला मजनू
खुदा भी हम सा होता है
केदार नाथ "कादर"
No comments:
Post a Comment