Friday, April 23, 2010

नए मानव का सृजन

आज अनेकों उपदेशक है धर्म के
किन्तु कोई भी नानक या कबीर नहीं
खेती की बात सभी करतें है लेकिन
मन के खेत सभी के हैं सूख
दुनिया की धन दौलत और मान के
सब के सब भूखे माया और मान के
कौन चाहता है शांति जीवन में ?कौन धर्म को होना चाहता है उपलब्ध ?कौन चाहता है सत्य का अन्वेषण ?कौन चाहता है मन भूमि का सिंचन ?चाहत है यदि परमेश्वर की मन में ?बीज सरलता का रखना होगा मन में
हृदय द्वार ईश्वर सब के खटकाता है
बीज प्रेम का समरूप सदा बिखरता है
किन्तु असत्य और धोखा मन का
इस बीज के अंकुर को खा जाता है
हृदय भूमि है जहाँ कठोर और काँटों भरी
सत्य नहीं उगता कभी ऐसे मन में
साधना हर स्वांस में जब होगी तभी
आराधना हर स्वांस में जब होगी तभी
मन के द्वार जब सब पे खुल जायंगे
मोक्ष और अपवर्ग सुख धरा पर आएंगे
हर जर्रा तभी तो बनेगा आफ़ताब
हम तभी सच में भारतीय बन पाएंगे
सत्य मिलन की अभिलाषा है यदि मन में
हल सरलता का चला डालो मन में
बीज परमेश्वर का पल्लवित पुष्पित होगा
फैल जाएगी सुगंध तब चहुँ ओर ही
तब उसी इश्वरत्व की सुगंध से
"
कादर" नए मानव का सृजन होगा
                      केदारनाथ "कादर"

"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

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