
कवियों, लेखकों का शुभ्रमंच:-विश्व को नौ रस समझा कर, प्रत्येक में मूर्धन्य महाकवियों से समृद्ध भारत में दिनकर के बाद, भांड और भाट, पूछे और पूजे जाने लगे, तब और दिनकर कहाँ से पैदा होंगे? समुन्द्र से गहरा, वासनामुक्त हो-साहित्य.तिलक.(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें,संपर्कसूत्र https://t.me/ydmstm - तिलक रेलन आज़ाद वरिष्ठ पत्रकार, संपादक युगदर्पण®2001 मीडिया समूह YDMS👑 09971065525, 9911111611, 9911145678.
Tuesday, June 15, 2010
ज़िक्र न करना
उसने कहा है देके कसम, मेरा ज़िक्र न करना
आ जाये गम गले तक भी, मेरा ज़िक्र न करना
माना अकेले होंगे तुम, हर मोड़ पर -ऐ- दोस्त
रूह जब्त न कर पाएगी सितम, मेरा ज़िक्र न करना
आँखों में उमड़ते रहें चाहे तेरी, अश्कों के समंदर
तुम डूबती कश्तियों से भी, मेरा ज़िक्र न करना
दुश्मन से न कहना बर्बादे मुहब्बत का ये किस्सा
खामोश निग़ाह दोस्तों से भी, मेरा ज़िक्र न करना
न सोचना की अंधेरों में, अकेले हैं हम कहीं
तेरा रोशन चिरागे याद है, मेरा ज़िक्र न करना
हम खुद ही हुए जाते हैं दफ़न अपने सीने में
"कादर" हों सामने भी अगर, मेरा जिक्र न करना
केदारनाथ"कादर"
kedarrcftkj .blogspot .com
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण
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