Thursday, March 18, 2010

असल के नेता मगर खुरचन हुए

गुरुदेव पंकज जी के आशीर्वाद से खिली ग़ज़ल आपकी नज़र है .......... आशा है आपको पसंद आएगी .....

नेह के संबंध जब बंधन हुए
मन के उपवन झूम के मधुबन हुए
      लक्ष्य ही रहता है दृष्टि में जहाँ
      वक्‍त के हाथों वही कुंदन हुए
प्रेम की भाषा से जो अंजान हैं
जिंदगी में वो सदा निर्धन हुए
      सत्य बोलो सत्य की भाषा सुनो
      तब समझना आज तुम दर्पण हुए
किसके हाथों देश की पतवार है
गूंगे बहरे न्‍याय के आसन हुए
      हैं मलाई खा रहे खादी पहन
      असल के नेता मगर खुरचन हुए
             दिगम्बर नासवा
"अंधेरों के जंगल में,दिया मैंने जलाया है !
इक दिया,तुम भी जलादो;अँधेरे मिट ही जायेंगे !!" युगदर्पण

No comments: