Monday, March 15, 2010

नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.

अंग्रेजी का नव वर्ष भले हो मनाया,
उमंग उत्साह चाहे हो जितना दिखाया;
विक्रमी संवत बढ़ चढ़ के मनाएं,
चैत्र के नवरात्रे जब जब आयें;
घर घर सजाएँ उमंग के दीपक जलाएं,
खुशियों से ब्रहमांड तक को महकाएं.
यह केवल एक कैलेंडर नहीं प्रकृति से सम्बन्ध है,
इसी दिन हुआ सृष्टि का आरंभ है.
युगदर्पण परिवार की ओर से अखिल विश्व में फैले हिन्दू  समाज सहित,चरअचर सभी के लिए गुडी पडवा, उगादी,
नवसंवत 2067 की शुभकामनाएं.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
Ugadi marks the beginning of a new Hindu lunar calendar. Celebrated mostly in Andhra Pradesh and Karnataka, it is a day when mantras are chanted and predictions are made for the new year. The most important part is Panchanga Shravanam - hearing of the Panchanga. The Panchanga Shravanam is usually done at the temples by priests. Before reading out the annual forecasts as predicted in the Panchanga, the officiating priest reminds the participants of the creator, Brahma, and the span of creation of the universe. Kavi Sammelanam (poetry recitation) is a typical Ugadi feature. A literary feast for poets and public alike, many new poems written on subjects as varied as Ugadi, politics, modern trends and lifestyle are presented. Kavi Sammelanam is also a launch pad for budding poets. And is usually carried live on All India Radio's Hyderabad 'A' station and Doordarshan, Hyderabad following 'panchanga sravanam' (New Year calendar).
The tastes of Ugadi are actually 6,Neem Buds/Flowers for Bitter, Raw Mango for Tangy, Tamarind Juice for Sour, Green Chilli for Hot, Jaggery for Sweet, Pinch of Salt for Salt
which symbolizes the fact that life is a mixture of different expereinces (sadness, happiness, anger, fear, disgust, surprise) , which should be accepted together and with equanimity.
HAPPY UGADI TO YOU ALL
तिलक संपादक युगदर्पण. .
(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/निशुल्क सदस्यता व yugdarpanh पर इमेल/चैट करें, संपर्कसूत्र-09911111611,9911145678,9540007993. www.bharatchaupal.blogspot.com/ http://www.deshkimitti.blogspot.com/

Wednesday, March 3, 2010

मन का बसंत
बसंत सब का तो नहीं हो सकता समय के साथ
लेकिन समय अगर अच्छा हो तो बसंत ही होता है
     हाँ ये बात और है कि ऐसा कभी कभी होता है
     इसलिये इश्वर ने भी एक ही बसंत बनाया है
मगर वह प्रभु समझ से परे की चीज़ है
इसलिये मन का बसंत हमेशा के लिए बनाया है
     जो किसी बादल के पानी का मोहताज नहीं है
     कभी आंसुओं से हरा होता है कभी आंसुओं में डूबता है
बसंत मन का कर सकते हो हमेशा के लिये
अगर दूसरों के आंसू पी सकते हो "कादर" हँसते हुए
केदार

Sunday, February 28, 2010

होली है.....! उल्लास का पर्व है, हुडदंग नहीं, उल्लास और शालीनता से मनाएं; अखिल विश्व में विराजे हिन्दुओं को युगदर्पण परिवार की ओर से, सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें !!

तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, (yugdarpanh@gmail/yahoo.com

Tuesday, February 23, 2010

Tuesday, 23 February 2010


अधूरे -पूरे

मैं उसे देखकर व्यथित था
उसकी उम्र और देह गोलाइयों से
उसमे क्या कोई भी कमी थी
बस वह चल ही तो नहीं सकती थी

हाँ वह विकलांग थी पैरों से
मुस्कुराती थी बहुत बातें बनाती थी
रोज़ मिलती थी मुझे बस स्टैंड पर
वह वैसाखियों से चलती थी

हाँ वह वैसाखियों से सिर्फ चलती थी
लेकिन उसकी तमन्ना थी उड़ने की
उसके विचार थे प्रेम से सने
वह दयामूर्ति थी दया की पात्र नहीं

हाँ, वह दया की पात्र नहीं थी
वह अन्दर से मजबूत और उत्साही थी
वह जीवन सिखाने आई थी
अपनी मौजूद सभी कमियों के साथ

हाँ अपनी सभी कमियों के साथ जीना
जान लेने के बाद बड़ा मुश्किल होता है
लड़ना खुद से आसन कहाँ होता है
वह लडती थी दौड़ती दुनियां से

हाँ वह लडती थी दौड़ती दुनियां से
उसमे जज्बा था कन्धा मिलाके चलने का
उसे कमी का एहसास ही नहीं था
उसकी शादी होने वाली थी

हाँ उसकी शादी होने वाली थी
जाने वाली थी एक नई दुनिया में
मगर आधे अधूरी सोच के लोगों ने
अपने जैसा मानने की कीमत मांगी

हाँ अधूरे लोगों ने पूरा मानने की कीमत
लेकिन अधूरे लोगों की पूरी बात गलत थी
उसके मां बाप उसे पूरा करते करते
क़र्ज़ से खुद अधूरे हो गए थे

हाँ क़र्ज़ के बोझ से अधूरे मां बाप
पैसे से उसकी ख़ुशी खरीदना चाहते थे
दिखने वाले पुरे लोगों सा दर्ज़ा दिलाकर
उसने इंकार कर दिया पूरा बनने से

हाँ वह पैसों की वैसाखी से पूरा नहीं बनी
मुझे पता चला एक रोज़ उसी से
उसने एक अपने जैसे अधूरे को चुना
आज वह उसे पति कहती है गर्व से

हाँ उसका विरोध "पूरे लोगों की भीड़" से
शायद पैसों की वैसाखी से भी हार जाता
मगर मन का विद्रोह उसका जाग्रत
दो अधूरों को एक पूरा कर गया

हाँ, उसकी सोच पूरे लोगों के लिए
चुनौती है अधूरा जीवन जीने वालों को
लोग शरीर से विकलांग अच्छे हैं
"कादर" सोच से विकलांगों का क्या करें

केदार नाथ "कादर"

Wednesday, February 17, 2010

हम भी खुदा

     हम भी खुदा
हम पागल हैं या वो बहरे,
असर नहीं क्यूँ होता है ?
प्यार में पागल हर कोई
क्यूँ सौ सौ आँसू रोता है ?
          आँसू क्यूँ आते हैं सोचो ?
          सपने धोने की खातिर
          बिन सपनोंवाला भी सोचो
          क्या कोई इंसा होता है ?
 हर एक का सपना लड़ता है
 बेबात ही मेरे सपनों से
 सपनों को बचाने की खातिर
 ग़दर दिलों का होता है
          ग़दर गलत है अपनी खातिर
          हर कोई ये समझाता है
         लड़ी न जिसने जंग कोई भी
         वो ही जनरल कहलाता है
 हम पागल हैं, हम लडतें हैं
 हमने ही सपने पाले हैं
 "कादर" है मतवाला मजनू
 खुदा भी हम सा होता है
केदार नाथ "कादर"

Wednesday, January 20, 2010

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ThitholeeDarpan_हास्य ठिठोली जीवनमें आवश्यक है
किन्तु जीवन ठिठोली नहीं है, न बना दी जाए!.इस पूरी
शृंखला में भारत की सभी प्रकार की पीड़ाकी अभिव्यक्ति
है आप इन सभी या इनमें से किसी भी पीड़ा को व्यक्त
करने हेतू कोई भी ब्लॉग चुन सकते हैं, लिख सकते हैं.
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--युगदर्पण समाचार पत्र समूह

तिलक राज रेलन सम्पादक- युग दर्पण
09911111611, 9911145678, 9540007993,-91